रात्र करना है और नवरात्र से हमारा जो भी अभीष्ट है वह पूरा हो जाए और उसके लिए जैसे षष्टि कात्यायनी का पूजा कर दिया हवन कर दिया और उसमें शांति शांति कर दिया स्वाहा स्वाहा कर दिया तो इतने में हमारा जो भी तत्व है या जो भी चाहते हैं या जिसको जो भी आवश्यकता है वह पूरा हो जाएगा क्या ऐसा नहीं होता है उसके लिए पूरा नवरात्र का साधना निरंतर पूरा 9 दिन तक करना पड़ता है और उसका जाप जिसका जो टारगेट रहता है नवरात्र का कम से कम 27000 का मंत्र का जाप सरवन और 125000 का मंत्र सिद्धि जाप इतना और उसका दशमांश हवन उसका दशमांश हवन करना यह है नवरात्र का आवश्यक साधना इससे नीचे में कोई भी काम उतना बढ़िया से फलित नहीं होता है यह इसका टेक्निकल तरीका है इसका अमाउंट कितना होना चाहिए सभी गायत्री मंदिर शक्तिपीठ में जाओगे तो वहां पर टारगेट देते हैं गायत्री मंत्र इतना लंबा मंत्र है 27000 का टारगेट देते हैं 9 दिन में कितना घंटा का शिफ्ट होना पड़ता है कितना घंटा बैठना पड़ता होगा और फिर आखिरी दिन नवमी दशमी के दिन पूर्णाहुति में उसका दशांश हवन करना और दुश्मन नहीं होता है तो फिर उससे आगे का जाप करवाना यह है इसका विधान
अगर सही विधान और सही तरीका से अगर व्यक्ति नवरात्र को नहीं करता तो फिर उसके जीवन में यह सारी चीज मिलना थोड़ा सा संभव लगता है क्यों ऐसा है और इससे नवरात्र करने से क्या होता है जब हम 9 दिन तक उपवास इत्यादि को आचरण करके सही शुद्ध पुत्र पवित्र अवस्था में नवरात्र साधना का कार्यक्रम और जाब्ता पवन कीर्तन मार्जन इत्यादि करते हैं तो उसमें हमारे अंदर का जो भी कल उसका अलमास ग्रहों का परिणति को परिणाम और ग्रहों का कुश्ती हमारे शरीर में रहता है या हमारे भाग्य में रहता है वह विनाश होता है और प्रसन्न होता है ग्रह शांति होता है और उसके बदले उसका हमें सु परिणाम और अच्छा परिणाम मिलने लगते हैं अगर हम यह बोल दे कि उससे कम में हो जी नहीं होगा क्या तो नहीं होता है बहुत सारे लड़कियां ऐसे नवरात्र करती हैं षष्टि कात्यायनी व्रत करते हैं दिया जला देते हैं किसी किसी का जल्दी हो जाता है लेकिन जिसका नहीं होता है और नहीं होना 100 में से 10 आदमी का ऐसे थोड़ा बहुत कर देने से हो जाता है लेकिन जो जितने सारे नवरात्र करके फिर होते हैं उसका पीछे रहस्य यही है कि उनको लगता है कि 9 दिन फास्टिंग टाइप जाना है और थोड़ा कर देना है और हो जाएगा इसमें यही नवरात्र है तो वह नहीं है इसमें ही मिलता है
सही साधना मतलब 9 दिन का एक प्रचंड साधना होना चाहिए और उसके टारगेट लेवल का मंत्र का जाप करके उस मंत्र का सिद्धि लेना चाहिए जैसे सोचो कोई बोरिंग खोज रहा है बोरिंग हो रहा है अगर कोई बोलेगा कि मेरे को 5 फुट में पानी मिल जाएगा 5 फुट में पानी नहीं मिलता है उसके लिए सॉफ्ट को देना पड़ता है 207 सपोर्ट कहीं पर और ज्यादा बोरिंग होने से हजार फूटने से बोरिंग से पानी निकलता है ट्यूबवेल से पानी निकलता तो ऐसा ही है अगर हम लोग नहीं उतना ही तक साधना नहीं करते तो उसमें सफलता नहीं मिलता अच्छा नहीं मिलता मिलेगा जरूर लेकिन अच्छा नहीं मिलेगा और क्योंकि वही ग्रह दोष हमारे अंदर रह गया है तो कल चलकर और ज्यादा समस्या build-up कर सकता है जैसे सोचो किसी का मंगला मंगली दोष है 1478 12 में बैठा है मंगल दोष लगा है तो उसके कारण उसके जीवन पर समस्याएं तो बनते हैं तनाव बनते हैं टेंशन बनते हैं चिंता बनते हैं लेकिन अगर उसका पूर्णतया सही से ग्रह का शांति नहीं हुआ तो फिर जिंदगी में दुबारा संघटना फिर से घटने लगता है और अगर उसका शांति किया गया है तो और खाली शांति नहीं ऐसा व्यक्ति को जीवन भर शांति कराते कराते ही चलना पड़ता है नहीं तो फिर उसके जीवन पर ऐसे ही बुरा परिणाम दोबारा तिबारा चौबारा भी देखने के लिए मिलता है
अभी है कि जैसे पूज्य गुरुदेव राम शर्मा आचार्य बोलते हैं कि अगर एक कार्य नहीं हो पा रहा है तो उसके लिए हम कितना माला जब ज्यादा करते हैं कितना ज्यादा सूर्य नमस्कार करते हैं इतना ज्यादा पाठ करते हैं और तभी जाकर वह चीज हमें मिलता है या नहीं साधना बलम महाबलम साधना बल नहीं है तो फिर वह नहीं मिलेगा और अगर हम हदर जाते हैं और उसमें अविश्वास प्रकट करते हैं माता रानी के ऊपर मां दुर्गा के ऊपर तो भी हमारा वह चीज सिद्ध नहीं होता नहीं प्राप्त होता वह तो हमारा मनोज तिथि हमारा है हम लोग का अगर गलत नेगेटिव मन स्थिति है हम इस प्रकार का बात करते हैं कि हमारे से कुछ नहीं होगा हमारा कोई नहीं है हम आगे नहीं पीछे नहीं है हमारा बेकार है इस प्रकार का नेगेटिव भावना नवरात्र के साधना में और फल देने में समस्या सृष्टिकर्ता है इसलिए मनोज तिथि को अपने अंदर दबाकर उस मनोज
साधना में की जो बीज मंत्र तंत्र साधना नवरात्रि साधना इत्यादि है इसमें सबसे ज्यादा जो खराब बताया गया वह अविश्वास करना विश्वास है मिलाई हरि तड़के बहुत है और जो विश्वास करता है उसको नहीं मिलता और दूसरा है कि निंदा करना कि हमारा यह मंत्र ठीक नहीं है यह शायद हमारा ठीक नहीं है या यह पंडित ठीक नहीं है या यह मूर्ति और ठीक नहीं है या यह मंदिर ठीक नहीं है या इससे होगा नहीं से क्या फायदा है इससे क्या होगा इस प्रकार के मानसिक कुरुक्षेत्र इस प्रकार के मानसिक दुर्बलता अपना ही नुकसान का कारण बनते हैं और यह बहुत हानिकारक रहता है इसलिए इन सब से मानसिकता से निकलना और प्रचंड साधना करना तभी जाके हमें हमारे जो लक्ष्य है अभीष्ट है वह अच्छा से प्राप्त होता है और नहीं तो फिर उसका परिणाम अच्छा नहीं होता