मन को एकाग्र करने के लिए मन को शांत करने के लिए मन को एक्टिव करने के लिए या जैसे मन को जैसे तुम्हारा मन विक्षिप्त है या तुम्हारा मन डाउट से भरा है द्वंद में भरा है ऐसा मन को अगर हम लोग का शांत करेंगे तो तुम्हारा प्रश्न यही है कि जब का मार्ग अच्छा है या फिर ध्यान का मार्ग अच्छा है क्रिश्चियन ओके सबसे पहला प्रश्न का उत्तर यह है कि यही कृष्ण प्रश्न श्रीमद् भागवत गीता में पूछा गया है और अर्जुन के द्वारा अर्जुन यह कह रहा है कि मन बहुत बलम इतना मतलब वरफुल है कि जिसको कंट्रोल कर पाना बहुत मुश्किल है और इसको क्या और कैसे और किस प्रकार करें क्योंकि हर एक व्यक्ति के जीवन में यह एक सामान्य बात है एंड टाइम में भाग जाना सही युद्ध हो रहा है और यह भाग रहा है युद्ध नहीं करेंगे मतलब क्या हुआ इसका अर्जुन का मन हो रहा है मुझे नहीं लड़ना है मैं भीख मांग कर खा लूंगा लेकिन मैं यह नहीं लूंगा हम सबके जीवन में भी आसपास ऐसे ही घटना होता है जब कोई काम करने के लिए आगे चलते हैं और वह काम हमें कष्ट पूर्ण लगता है या फिर किसी कारण व साथ विकसित होता है विच्छेद होता है तो फिर हम लोग वहां से क्विट कर जाते हैं यह एक मन का अति सरल और सामान्य विषय में हर एक युवा आज इसी रोग में ग्रसित है कि जीवन में जब-जब ऐसा कोई परिस्थिति आया है वह स्वभाविक रुप में वहां से हटने का भागने का नहीं करने का कई प्रकार का बहाना मानसिक लेवल पर बनाता है और नहीं करता उसको बचने का कोशिश करता है अब तुम्हारे प्रश्न का मूलभूत बात पर आते हैं कि ध्यान सही है या जब सही है ध्यान सही है ना जब सही मन के लिए हर एक व्यक्ति का अलग-अलग मन बताया गया है ठीक है और गीता शास्त्र में वेदांत शास्त्र में योग शास्त्र में मन को मन का तीन स्थिति बताएं गया और उसमें सत्व रज तम तीन प्रकार का मना मानसिक 11 परिस्थिति को बताया गया तामसिक राजसिक और सात्विक श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण भगवान बड़े विस्तारपूर्वक व्याख्यान की अलग-अलग मन के लिए चार मार्ग बताएं और उसमें से पहला मार्ग था कर्मयोग दूसरा मार्ग था राजयोग तीसरा मार्ग था ज्ञानियों चतुर्थ मार्ग था भक्तियोग और कर्मयोग कर्म के माध्यम से कर्म को काटना तुम्हारे साथ कोई ऐसा कुछ गलत कर्म तुम जिंदगी में किए हो जिसका विभाग किया गया नित्य करमा नृत्य करके करेंगे तो डिटेल जाएंगे श्रीमद्भागवत गीता में सबसे पहला अध्याय तक इसी बात पर ध्यान भी करो जब भी करो उसका कोई महत्व नहीं है जब तक तुम कर्म नहीं करते और सनी बाबा तब तक नहीं छोड़ते हैं जब तक तुम करने का यानी तुम्हारे मन को शांत और एकाग्र करने के लिए सबसे पहला आवश्यकता क्या है कर्मयोग जो व्यक्ति कर्मयोग नहीं करता उसका मन अगर यह सोचता या प्रयास भी करता है तो वह फेल हो जाएगा क्योंकि इसको सूत्रा का रूप में भगवान श्रीकृष्ण मन के मन को काम में लगाने के लिए बोले तो क्या बोलते हैं उसमें कि नहीं कश्चित् क्षणम अभी या तो तिष्ठति अकर्मक रथ जो व्यक्ति कर्म को नहीं करता है यानी कि जो मन है बिना कर्म में नहीं कशिश क्षण में एक क्षण भी तुम्हारा मन नहीं रह सकता यह पहले समझ लो यानी तुमको ध्यान करना है या जब करना है पूजा करना है या पाठ करना है लेकिन उन सब से पहले कर्मयोग करना है कर्म नहीं जब तक कर्म और कर्मयोग का तुम नहीं करते हो पालन तब तक ना तुम ध्यान में सफल हो सकते हो ना जब मैं सफल हो सकते हो और जो व्यक्ति कर्मयोग में अपने को नष्ट नहीं करता है वह व्यक्ति कितना भी ध्यान कर ले कितना भी जब कर ले कितना भी पूजा कर ले कितना भी पाठ कर ले उसका कोई महत्व नहीं रहता है न कर मना मना कर में पुरुषों से बताया गया है यह सूत्र का रूप में बता रहे हैं कर्मेंद्रियों अत्याचारी सबूत है जो कर्मयोग नहीं करता है और केवल ध्यान और पूजा-पाठ और यह सब करता है उसे बोलते हैं उसको बोलते हैं लेकिन जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ 14 साल का कोई मजाक नहीं है कोई बच्चा का खेल तो नहीं है 14 साल में कितना तेल कितना कितना कितना कर लिया लेकिन जीवन में जब अपना मन का बात करें तो थोड़ा हो गया तो हिल गया बाप मर गया तो फिर भगवान और सब को दोष देने लग गया 14 साल का तपस्या पानी में क्योंकि 14 साल में तुम्हारा हो गया मर गया और तुम अपने मन को एकाग्र नहीं कर पाए और प्रज्ञा में नहीं रह पाए तो ऐसे जैसे पाठ का मूल्य इसलिए यहां पर सबसे पहला आपका जो प्रश्न है जब बढ़ाया ध्यान ना जब बढ़ाया ध्यान कर्मयोग सबसे प्रमुख है बड़े-बड़े आश्रमों में जाओगे जो ओरिजिनल आश्रम है जहां पर पैसा कमाने वाला आश्रम का बात नहीं कर रहा हूं इसे बढ़ाने का आश्रम बात नहीं कर रहा हूं जो प्रैक्टिकल बड़े-बड़े जो संत महात्मा साधु रहते हैं जो बाहर अपने को ऐड नहीं करते और अपने को हमेशा ईश्वर भक्ति में रखते हैं जिनका कोई मकसद नहीं है कि तुम चेला बना कि नहीं तुम दिखा दिया कि नहीं ऐसे संतो के पास जाओगे तो देखना कितना भयंकर मेहनत करते हैं और कभी ऐसे संत चाहिए तो मेरे को बोलना मैं तुम्हें लेकर जाऊंगा ऐसे साधु संत के पास दर्शन करा कर आओगे और साधु संत किसको बोलते हैं जंगल के अंदर बैठा है एमबीबीएस डॉक्टर है एमबीबीएस डॉक्टर लेकर खेती करके ध्यान ध्यान
दोनों के बिना अधूरा है ऐसे ही ध्यान के बिना सब अधूरा जब के बिना ध्यान अधूरा और ध्यान और जब कर्म के बिना अधूरा अब इसको ऐसे हम सिंपलीफाई करते हैं ज्ञान योगेश संख्या नाम कर्म योगेश सहयोगी नाम जो ध्यान मार्ग में जाने वालों को एक ज्ञान मार्ग में चलने वालों को बोला गया है और कर्मयोग में चलने वालों को ही बोला गया है योगी योगी नाम कर्मा योगेश योगी नाम अब फिर ध्यान कौन से मार्ग में आता है राजीव राजा जैसे बैठने वाला और ईश्वर को पाने का मार्ग कहां गया जिसमें ध्यान योग सबसे ज्यादा विषय आता है जब तक इसमें आ गया जब का मार्ग आयोग तो यह जो भी हर एक व्यक्ति का अलग-अलग रुचि है अलग-अलग माइंड में कब है उसी अनुसार उसको कौन से मार्ग में जाना है और इसी चीज का अगर कोई सही निर्णय कर सकता है इसीलिए बोला गया ज्योतिष जो ज्योति आंख किसका वेद का व्यक्ति का ऑस्टोलो जी यहीं पर काम करता है कि तुम्हें कौन से मंत्र को कौन से देवी को कौन से देवता को तुम साफ तो बनोगे साइबर बनोगे गाना पत्तियों बनोगे कर्मयोगी बनोगे निराकार निर्गुण मुख्य चैतन्यानंद स्वरुप बनोगे बुत बुत परस्ती बनोगे या निर्गुण वाले बनोगे क्या बनोगे यही निर्णय तुम्हारा कुंडली बता देता है और तुम यह सब करके सच में मुखिया मुख से मुक्ति पाओगे या नहीं पाओगे यह कौन डिफाइन करता है मारे मेडिटेशन सिस्टम में एस्ट्रोलॉजी तो अभी यह जो तुम्हारा प्रश्न रहा कि मुझे जब करना चाहिए या ध्यान करना चाहिए जब करते-करते लगता है और ध्यान करते करते एक दूसरे का